भूख, प्यास, नींद और आशा चार बहनें थीं। एक बार उनमें आपस में लडाई हो गई। वे खुद को एक दूसरे से बडा बताने लगी। लडते-झगडते राजा के पास पहुँची। राजा ने भूख से पूछा - तुम बडी कैसे हो ? भूख बोली - मैं बडी इसलिये हूँ क्योंकि मेरे कारण ही घर में चूल्हा जलता है, पकवान बनते हैं और थाल सजाकर जब कोई मुझे देता है तभी मैं खाती हूँ, नहीं तो मैं खाऊं ही नहीं।
राजा ने राज्य में मुनादी करवा दी कि कोई भी अपने घर में चूल्हा न जलाये, पकवान न बनाये। मैं देखता हूँ कि भूख लगेगी तो भूख कहॉं जाएगी ? सारा दिन बीत गया। रात को भूख के पेट में चूहे कूदने लगे। उसने खूब ढूँढा ढॉंढी की पर उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला। लाचार होकर वह घर में पडी बासी रोटी खाने लगी। प्यास ने यह देखा तो दौडी-दौडी राजा के पास जाकर कहने लगी - राजन् भूख तो बासी रोटी खा रही है। मैं ही बडी हूँ। राजा बोला – भूख तो हार गई।
अब राजा ने प्यास से पूछा - तुम कैसे बडी हो ? प्यास बोली - मेरे कारण ही लोग कुएं, तालाब बनवाते हैं। जब मुझे गिलास भरकर पानी देते हैं तभी मैं पीती हूँ, नहीं तो पीऊं हीं नहीं। राजा ने मुनादी करवा दी कि कोई भी पानी भरकर नहीं रखेगा। कुएं, तालाब पर पहरा बिठा दो। प्यास को प्यास लगेगी तो जाएगी कहॉं? सारे दिन प्यास को पानी नहीं मिला। बेचारी थक-हार कर गंदे नाले का पानी पीने लगी। नींद ने यह देखा तो राजा के पास जाकर कहा – राजन्, प्यास तो हार गई। वह गंदा पानी पी रही है। अब तो मैं ही बडी हूँ।
राजा ने नींद से पूछा – तुम बडी कैसे हो ? नींद ने कहा - लोग मेरे लिए पलंग बिछाते हैं, उस पर बिस्तर लगाते हैं और जब मुझे बिस्तर लगाकर देते हैं तब ही मैं सोती हूँ, नहीं तो सोऊं ही नहीं। राजा ने इस बार मुनादी करवा दी कि कोई भी पलंग नहीं बनवाए, उस पर गद्दा भी नहीं लगाए। मैं देखता हूँ कि नींद को नींद आती है तो वह कहॉं जाती है ? रात होने पर नींद इधर-उधर घूमती रही पर उसे कहीं पलंग और बिस्तर नहीं मिले। लाचार होकर वह जमीन पर ही पड गई। आशा ने उसे देखा तो दौडकर राजा के पास गई और बोला – राजा ! राजा ! नींद भी हार गई। अब तो मैं ही सबसे बडी हूँ।
राजा ने कहा – चलो, बताओ तुम बडी कैसे हो ? आशा बोली मेरे खातिर लोग काम में लगे रहते हैं। नौकरी धंधा मजदूरी करते हैं। लोग खूब परेशानियॉं उठाते हैं पर सबके मन में आशा का दीप जलता रहता है। राजा ने राज्य में मुनादी करवा दी कि कोई भी काम धंधा न करे, नौकरी – धंधा सब बंद कर दे। आशा का दीप न जलाए। मैं देखता हूँ कि फिर आशा क्या करती है ? पूरे दिन राज्य में किसी ने कोई काम नहीं किया। आधी रात बीत गई। वह राज्य में घूमने निकली। चारों ओर अंधेरा था। सिर्फ एक कुम्हार टिमटिमाता दीपक लेकर उसके उजाले में चाक चला रहा था। आशा वहीं जाकर टिक गई। राजा ने देखा कि इस दुनिया में कभी कोई काम बंद नहीं हो सकता । धुन के धनी लोग चाहे भूख, प्यास और नींद को भूला कर दिन-रात काम में लगे रहते हैं। राजा ने आशा से कहा – तुम ही संसार में सबसे बडी हो। तुम्हारे ही बल पर लोग हजार बाजी हारने पर भी दुबारा जीतने की जुगत में लग जाते हैं।